दोस्तों इंटरनेट का उपयोग हम प्रतिदिन करते है. इंटरनेट हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो गया है. आज के ज़माने में इंटरनेट की मदद से लगभग सारे काम हो जाते है. दुनिया का हर एक भाग इंटरनेट से जुड़ा हुआ है. इंटरनेट का उपयोग करने के लिए हमें मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, कंप्यूटर का इस्तेमाल करना पड़ता है, मतलब हमारे मोबाइल और कंप्यूटर इंटरनेट की मदद से एक दूसरे से जुड़े हुए है और इसी वजह से कोई भी ऑनलाइन काम करना संभव हो जाता है.
दोस्तों रोज की जिंदगी में हम बहुत सारे चीजों का इस्तेमाल करते है जैसे की घर में फैन, लाइट बल्ब, वॉशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, टीवी, फ्रिज, सीसीटीवी कैमरा, म्यूजिक सिस्टम का उपयोग करते है. इन चीजों को नियंत्रित करने के लिए हमें उस चीज के पास जाना पड़ता है या हम उसे रिमोट कण्ट्रोल का उपयोग करना पड़ता है. क्या होगा अगर हम इन चीजों को इंटरनेट से जोड़ा जाये तो? इसी विचार के वजह से इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उदय हुआ.
इस लेख में:
इंटरनेट ऑफ थिंग्स क्या है?
इंटरनेट ऑफ थिंग्स एक ऐसी वस्तुए है जो सेंसर, सॉफ्टवेयर और टेक्नोलॉजी का उपयोग करके दूसरी वस्तु और प्रणाली से इंटरनेट या संचार नेटवर्क की मदद से जुड़ जाती है और डाटा को एक दूरसे के साथ लेन देन करती है.
इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स का हिंदी में मतलब वस्तुओ का इंटरनेट है. जैसा की नाम है इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स लेकिन ये जरुरी नहीं है की वस्तुए इंटरनेट की मदद से एक दूसरे से जुडी हो, वे दूसरे संचार नेटवर्क जैसे ब्लूटूथ, लैन केबल से भी जुडी जा सकती है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इतिहास और विकास
- कार्नेगी मेलोन यूनिवर्सिटी में साल १९८२ में पहली बार IoT संकल्पना का इस्तेमाल कोका कोला वेंडिंग मशीन में किया गया, तब ये मशीन नेटवर्क की मदद से बताती कि कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल ठंडी है या नहीं.
- इंटरनेट ऑफ थिंग्स की संकल्पना पीटर टी. लेविस ने अपने भाषण में सितम्बर १९८५ में की थी.
- १९९० में जॉन रोमके ने इंटरनेट का उपयोग करके टोस्टर को चलाया था.
- सन १९९९ में पहली बार केविन एश्टन ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स वाक्यार्थ का उपयोग किया.
- २००० में LG कंपनी ने दुनिया सबसे पहला इंटरनेट रेफ्रिजरेटर बाजार में लाया. इस रेफ्रिजरेटर में LAN पोर्ट था और केबल की मदद से इसे इंटरनेट से जोड़ा जा सकता था. इस रेफ्रिजरेटर में डिजिटल स्क्रीन थी और वेब कॅम था. वेब कॅम और इंटरनेट की मदद से दूर बैठकर देखा जा सकता था कि फ्रिज में क्या है.
- २६ मार्च २००८ को पहला इंटरनेशनल IoT कांफ्रेंस जुरिच, स्विट्ज़रलैंड में हुआ था. इसी साल IoT वस्तुओं की संख्या मानव आबादी से ज्यादा हुई.
- २००९ में गूगल ने स्वयं चलने वाली कार का परीक्षण करना चालू किया.
- साल २०२० तक IoT डिवाइस की संख्या ४००० करोड़ से भी ज़्यादा हुई.
- २०१० से लेकर आज तक IoT के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई और अलग अलग प्रकार के IoT डिवाइस का आविष्कार हुआ जैसे स्मार्ट वॉच, सेल्फ ड्राइविंग कार, स्मार्ट टीवी, स्मार्ट वॉचेस.
- जैसे जैसे IoT डिवाइस की संख्या बढ़ने लगी वैसे वैसे साइबरऔर मालवेयर अटैक की संख्या भी बढ़ने लगी. इसको लेकर अलग अलग देशों के सरकार ने IoT के सिक्योरिटी के लिए कुछ नियम और कायदे बनाये.
- एक डिवाइस से चालू हुई थी यह संकल्पना. आज IoT डिवाइस की संख्या करोड़ों में है और इस क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स कैसे काम करता है?
IoT सिस्टम का कार्य चार प्रमुख घटक से चलता है:
- डिवाइस / सेंसर
- कनेक्टिविटी
- डेटा प्रोसेसिंग
- यूजर इंटरफ़ेस
डिवाइस / सेंसर
डिवाइस मतलब वस्तुए होती है, जिसका उपयोग हम IoT डिवाइस के रूप में करने वाले होते है. कुछ डिवाइस में सेंसर होते है. सेंसर इनपुट डिवाइस होते है और जानकारी को इकट्ठा करते है. पर्यावरण में होने वाले बदलाव जैसे तापमान, दबाव, प्रकाश, गति, दिशा के बारे में जानकारी इकट्ठा करते है.
कनेक्टिविटी
सेंसर की मदद से IoT डिवाइस ने जो जानकारी इकट्ठा की है, उसे वापरकर्ता के पास या फिर डाटा प्रोसेसिंग को भेजने के लिए, एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिए किसी माध्यम की जरूरत होती है, उसे कनेक्टिविटी कहते है.
कनेक्टिविटी के बहुत सारे अलग अलग माध्यम हो सकते है. अलग अलग IoT डिवाइसेस, IoT डिवाइस और वापरकर्ता, IoT डिवाइस और डेटा प्रोसेसिंग सिस्टम के बीच की दूरी के हिसाब से कौन सी कनेक्टिविटी माध्यम का उपयोग करना है ये तय किया जाता है. कनेक्टिविटी की प्रक्रिया वायर के मदद से या फिर वायर के बगैर मतलब वायरलेस हो सकती है.
कनेक्टिविटी के बीच की दूरी और माध्यम के हिसाब से आगे कुछ कनेक्टिविटी के प्रकार दिए है.
वायरलेस कनेक्टिविटी
कम दूरी – ब्लूटूथ, वाई-फ़ाई, लाई-फ़ाई, झिगबी, जेड-वेव
मध्यम दूरी – मोबाइल नेटवर्क (2G, 3G, 4G, 5G)
लंबी दूरी – लो-पावर वाइड-एरिया नेटवर्किंग, सैटेलाइट कम्युनिकेशन (डिश ऐन्टेना)
वायर कनेक्टिविटी
ईथरनेट (ओप्टिकल फाइबर), पावर-लाइन कम्युनिकेशन
डेटा प्रोसेसिंग
IoT डिवाइस द्वारा इकट्ठा की गई जानकारी कनेक्टिविटी नेटवर्क की मदद से डेटा प्रोसेसिंग सिस्टम में आती है. यहाँ जानकारी पर अलग अलग प्रक्रिया की जाती है. इस, प्रक्रिया की गई जानकारी को वापरकर्ता के पास भेजा जाता है.
यूजर इंटरफ़ेस
आखिरी में IoT डिवाइस की जानकारी वापरकर्ता को मिलती है. यह जानकारी स्मार्टफोन या कंप्यूटर एप्लीकेशन में दिखाई देती है और एप्लीकेशन की मदद से वापरकर्ता IoT डिवाइस के साथ संपर्क कर सकता है. इसे यूजर इंटरफ़ेस कहा जाता है. वापरकर्ता यूजर इंटरफ़ेस की मदद से IoT डिवाइस को नियंत्रित कर सकता है, सूचना दे सकता है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स के फायदे
सुरक्षा
IoT के कारण घर, ऑफिस, स्कूल, कॉलेज, कंपनी, इंडस्ट्री और सार्वजनिक स्थल की सुरक्षा बढ़ गयी है. इन जगह निगरानी करने के लिए हम सीसीटीवी कैमरा का इस्तेमाल कर सकते है. कुछ जगह पर काम करते वक्त इंसान के जान को खतरा हो सकता है, वहां हम इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स का उपयोग करके खतरे को दूर कर सकते है.
समय
IoT डिवाइस का इस्तेमाल करने के कारण समय की बहुत बचत होती है. हम एक जगह बैठकर किसी भी उपकरण को नियंत्रित कर सकते है. उसे सूचना दे सकते है. इसी वजह से समय की बचत होती है.
लागत
कारखाने में जहां एक काम करने के लिए बहुत लोगों की जरुरत थी वहीं काम मशीन अकेली कर रही है. इसी कारण लोगों पर होने वाले खर्चे कम हो गई है. IoT सिस्टम की वजह से मशीन की सटीकता और बढ़ गयी है, उत्पादन के दौरान वस्तुओं का ख़राब होना अब बहुत काम हो गया है. इस कारण से उत्पादन की लागत कम हो गई है.
जीवन स्तर
IoT के वजह से इंसान का जीवन बहुत आरामदायक हो गया है. हम घर बैठे स्मार्टफोन के मदद से बहार का काम बड़े आसानीसे कर सकते है. हम दुनिया के किसी भी जगह से घर में मौजूद उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, फैन, ऐसी को नियंत्रित कर सकते है.
उच्च उत्पादकता और कार्यक्षमता
निर्माण उद्योग में जहां इंसान काम करता था, उस इंसान का काम आज IoT के मशीन कर रहे है. मशीन बिना थके और बिना आराम किए, सटीकता से काम करती है. इसी वजह से कम समय में ज्यादा वस्तु का निर्माण करना आसान हो गया है.
गति
IoT के उपयोग से सभी क्षेत्र के काम बहुत तेज हो जाते है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स के नुकसान
सिक्योरिटी और प्राइवेसी
IoT सिस्टम को चलने के लिए नेटवर्क कनेक्शन की जरूरत होती है. नेटवर्क कनेक्शन हैक होने की संभावना होती है. यदि किसी व्यक्ति ने नेटवर्क हैक कर लिया तो वह व्यक्ति आपके IoT डिवाइस का नियंत्रण हासिल कर सकता है, IoT डिवाइस के कार्य में आसानी से हेरफेर कर सकता है. आपकी व्यक्तिगत जानकारी उसको प्राप्त हो सकती है.
आजकल सभी सीसीटीवी वाई-फ़ाई इंटरनेट से जुड़े हुए है. यदि आपके घर में सीसीटीवी है, और वह सीसीटीवी वाई-फ़ाई कनेक्शन से जुड़ा हुआ है. इसका मतलब है आप सीसीटीवी को वाई-फ़ाई की मदद से नियंत्रित कर सकते हो, आप घर से दूर किसी भी जगह से सीसीटीवी के माध्यम से घर में क्या चल रहा है ये देख सकते हो. क्या होगा? अगर किसी ने आपका वाई-फ़ाई हैक किया तो? वह हैकर आपके घर में क्या चल रहा है ये आसानी से देख सकता है.
खर्चा
अलग अलग IoT डिवाइस में विभिन्न प्रकार के सेंसर होते है. इस सिस्टम को बनाने के लिए नेटवर्क कनेक्शन की आवश्यकता होती है. इसके कारण IoT सिस्टम का खर्चा बहुत होता है. उपयोग के अनुसार कुछ IoT डिवाइस को हमेशा चालू रखना आवश्यक होता है, इसी वजह से इंटरनेट का और बिजली का खर्चा बढ़ जाता है. मेंटेनेंस का खर्चा भी ज्यादा आता है.
बेरोजगारी
IoT के कारण ऑफिस, कंपनी, फैक्ट्री के उपकरण और यंत्र ऑटोमेटिक हो गए है. उन्हें चलाने और नियंत्रित करने के लिए इंसानो की आवश्यकता नहीं होती.
जिस जगह सिक्योरिटी की आवश्यकता होती थी वहां सिक्योरिटी गार्ड की जरुरत थी. लेकिन, आज के ज़माने में सिक्योरिटी गार्ड की जगह cctv कैमरा ने ली है. फैक्ट्री की मशीन IoT के कारण ऑटोमेटिक हो गई है, वह निर्णय खुद ले रही है. इस कारण बेरोजगारी बढ़ रही है.
स्वास्थ्य
IoT की वजह से उपकरण स्मार्ट हो गए है. हमारे घर स्मार्ट हो गए है. घर के सभी उपकरण IoT सिस्टम के कारण हम एक जगह बैठकर मोबाइल के मदद से नियंत्रित कर सकते है. इसी वजह से हमारे शरीर की हलचल कम हो गयी है और हम आलसी हो रहे है. इसका असर हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर हो रहा है.
निर्भरता
IoT सिस्टम को काम करने के लिए हमेशा स्थिर इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है. इंटरनेट कनेक्शन में कोई गड़बड़ी हो गई या बंद हो गया तो IoT सिस्टम काम करना बंद कर देता है.
जटिलता
IoT सिस्टम का काम बहुत जटिल होता है. इस सिस्टम को इनस्टॉल और मेंटेन करने के लिए कुशल व्यक्ति की जरूरत होती है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उपयोग
IoT का उपयोग हम विभिन्न क्षेत्र में कर सकते है.
- खेती
- शिक्षा
- हेल्थ केयर
- स्मार्ट होम
- स्मार्ट सिटी
- परिवहन
- इंडस्ट्री
- उत्पादन
- ऊर्जा प्रबंधन
- बैंकिंग
- निगरानी